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कविता

अजीब दृश्य है यह

चंद्रेश्वर


अजीब दृश्य है यह
तेज रफ्तार पहाड़ी नदियों की प्रलय-धारा की तरह
हहराता आगे की ओर बढ़ता
मिटाता जाता असंख्य पहचानों, इनसानी बस्तियों
जंगल, पहाड़, श्रम, खेत की फसलों, भाषाओं, बोलियों...
साहित्य, संस्कृतियों, इतिहास और इनसान होने की गरिमा को
सब कुछ को तहस-नहस करता हुआ

अजीब दृश्य है यह
बदलता हुआ
हमारे आस-पास की भूमि को समतल में

चीजों और उच्च तकनीक से लदे-फँदे
हम सब खोते जाते अपनी स्मृतियाँ, नसीहतें
जो पुरखों ने सौपीं थीं हमें
प्यार और जतन से
जिंदगी की जंग बखूबी लड़ते हुए!

 


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